नारी विमर्श >> औरत की बोली औरत की बोलीगीताश्री
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"औरत की बोली — जिस बाज़ार में देह बिकती है, वहाँ इंसानियत गुम हो जाती है।"
प्रबुद्ध पत्रकार गीताश्री की देह व्यापार के वैश्विक परिदृश्य पर आधारित यह पुस्तक ‘औरत की बोली’ उनकी सतेज, निर्भीक और गहरी संवेदनशील नजर का परिणाम है। उनका कहना है, ‘‘दुनिया की नजर में वे चाहे जो हों, बुरी, अछूत, गंदी, लेकिन मेरी नजर में वे दैहिक श्रमिक हैं।”
लेखिका की नजर यहां उनकी विवशता पर है, ‘इजी मनी’ कमाने की राह पर चलने वाली लड़कियों को वह इस परिधि से बाहर रखती हैं। मजबूत देह बाजार के सामने कानून कितना मजबूर नजर आता है। वेश्यावृत्ति निरोधी कानूनों की पड़ताल के साथ-साथ तेजी से बदलते जा रहे इस धंधे को की नब्ज को गहराई से परखा है।
धर्म की सोहबत में हुए देह के सौदे पर समाज कैसे गर्व करता रहा है, खुद को विश्व बाजार में आज किस तरह बेच रही हैं लड़कियां और मर्द भी बेच रहे हैं देह…।
सेक्स वर्करों की अनेक देशों में स्थिति कैसी है, आदि पर भी यह पुस्तक एक गंभीर विमर्श है। आधुनिक सभ्यता की आड़ में भाषिक छद्म के साथ हो रहा यह व्यवसाय कैसे आज सारी दुनिया में पसरा हुआ है, कैसे इसकी वजह से सपने दरक रहे हैं और किस तरह जीबी रोड जैसी जगहें जिंदा लाशों की कब्रगाह में तब्दील होती जा रही है, यह सच्चाई ‘औरत की बोली’ में पूरी तरह खुलकर सामने आई है।
तथाकथित आधुनिक सभ्यता के गाल पर यह पुस्तक एक ऐसा रचनात्मक तमाचा है जो पाठकों को न सिर्फ परेशान होने पर मजबूर करेगा, बल्कि उसकी सोई हुई संवेदनशीलता को जगाने का काम भी करेगा। हिन्दी में इस वर्जित विषय पर गीताश्री का यह एक बेहद साहसिक प्रयास है।
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